फिल्में हमारे जीवन में एक अहम जगह रखती हैं. ये समाज को काफ़ी हद तक प्रभावित करती हैं. फिल्में समाज में इसलिए भी इतनी लोकप्रिय हुई कि इनमें दृष्य और आवाज़ दोनों होते हैं, इसलिए ये हमारे भीतर आसानी से पैठ जाती हैं. पर फिल्मों का बगीचा ऐसा है कि इसमें फूल भी हैं और काँटे भी, और कुछ बेकार सी झाड़ियाँ भी. कई बार हम बड़ी मुश्किल से वक्त निकालकर और मूड बनाकर कोई फिल्म देखते हैं, पर फिल्म पूरी होने के बाद हम अपना माथा पीट लेते हैं. बेकार फिल्म देखने के बाद हमारा दिमाग और वक्त, दोनों ही खराब हो जाते हैं.
कई बार हम तलाश में होते हैं उम्दा फ़िल्मों की, हम दोस्तों से पूछते हैं, गूगल करते हैं – वर्ल्ड्स बेस्ट फिल्म्स. वैसे तो फिल्मों को लेकर सबकी पसंद अलग-अलग होती है – कुछ लोगों को एक्शन फिल्में पसंद होती हैं, तो कुछ को इमोशनल, कुछ को वार या हिस्ट्री फिल्म तो कुछ को चाँद-तारे दिखाती स्पेस फिल्में. लेकिन फिर भी अच्छी फ़िल्में अच्छी ही होती हैं.
मैं बचपन से फ़िल्मों को लेकर बहुत पैशनेट रहा हूँ. भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी-बारिश, सब कुछ बर्दाश्त कर लेता था मैं एक अदद अच्छी फ़िल्म देखने के लिए. जब विदेशी सिनेमा ने आकर्षित किया तो भाषा रुकावट बन गई, पर बात फ़िल्मों की थी, इसलिए अंग्रेजी से पंजा लड़ाया और आखिरकार यह विलायती भाषा सीखी, ताकि विश्व का सिनेमा देख-समझ सकूँ. अपनी इस यात्रा में मेरे हाथ कुछ अनमोल मोती लगे, जिन्हें मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ. इस सेक्शन में आपको देश-विदेश की उम्दा फ़िल्मों के बारे में जानकारी मिलेगी. हर फ़िल्म का आगा-पीछा, उसकी खासियत, उसके उम्दा होने की वजह, उसकी तकनीकी और कलात्मक बारीकियाँ, वगैरह-वगैरह.
तो उम्दा फ़िल्मों की समीक्षा का यह सेक्शन पढ़ते रहिए और अपने विचारों से भी अवगत करवाते रहिए. विज़िट कीजिए www.pawankaresor.com
आपका
पवन अग्रवाल