कहानियों के साथ हमारा नाता बहुत गहरा होता है. एक माँ अक्सर अपने गर्भस्थ शिशु को कहानियाँ सुनाती है, इसलिए हम और किसी के बारे में तो नहीं, पर कहानियों के बारे में कह सकते हैं कि हम कहानियाँ माँ के पेट से सीखकर पैदा होते हैं. जन्म से लेकर मृत्यु तक कहानियाँ हमारे इर्द-गिर्द मौजूद रहती हैं. बचपन में दादी-नानी या स्कूल के टीचर हमें कहानियाँ सुनाते हैं. ज़्यादातर धार्मिक शिक्षाएं भी कहानियों के माध्यम से ही दी जाती हैं. हम अपने देवी-देवताओं से भी कहानियों के ज़रिए ही परिचित होते हैं. लगभग रोज़ ही हम कहानियाँ सुनते हैं, देखते हैं, बनाते हैं, कहते हैं. कहीं लेट पहुँचे या नहीं पहुँचे तो हम जो बहाना बनाते हैं, वो क्या है… कहानी ही तो है! यहाँ तक कि मरने के बाद भी उत्तरकार्य में कहानियों की भूमिका रहती है. अब जब कहानियों का इतना माहात्म्य है तो हमारा ये ब्लॉग भी इस विधा से क्यों अछूता रहे? इसलिए प्रस्तुत है पवन का सोर कहानियों के स्वरूप में… विज़िट करें www.pawankaresor.com
हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं और सुझावों के इंतज़ार में…
आपका
पवन अग्रवाल