फ्री… मुफ़्त… नि:शुल्क… ये आकर्षक और लुभावने शब्द हमें अक्सर देखने, सुनने और पढ़ने में आते हैं. जैसे-जैसे बाज़ारीकरण और पूँजीवाद का प्रसार हो रहा है, आपके लिए ‘डिस्काउंट’, ‘ऑफ़र’ और ‘फ्री’ जैसे शब्द आम से आमतर होते जा रहे हैं. अब तो ये हालत हो गई है कि आधे से ज़्यादा प्रोडक्ट्स पर ये शब्द स्थाई रूप से दिखाई देने लगे हैं. वो बिस्किट या आलू चिप्स ही क्या, जिसके पैक पर 30% या 50% ‘एक्स्ट्रा’ ना लिखा हो. वो दुकान या शोरूम ही क्या, जिस पर ‘सेल’ का बोर्ड नहीं लगा हो. चाय के साथ चीनी, मिर्ची के साथ गरम मसाला, च्यवनप्राश के साथ शहद, शैम्पू के साथ साबुन, बैंक अकाउंट के साथ एटीएम कार्ड, कार या बाइक के साथ एक्सेसरीज़ वगैरह-वगैरह.
एक जापानी कहावत है – ‘कभी कुछ भी फ्री में नहीं मिलता’. इसे बिलकुल सच मान लीजिए. चाहे आपको कोई कितना ही लालच दे, एक बात याद रखिए कि वो जो फ्री में देने की बात कर रहा है, उसकी कीमत आप चुकाएंगे ही, चाहे वो किसी भी रूप में हो.
अक्सर ‘फ्री’, ‘सेल’, ‘ऑफ़र’ या ‘डिस्काउंट’ जैसे लोक-लुभावने शब्दों से हमारी माताएं-बहनें जल्दी प्रभावित हो जाती हैं. इसीलिए कंपनियाँ इस मामले में उन्हीं को टारगेट करते हैं. इसका एक अच्छा उदाहरण देता हूं – कई हॉलिडे या वेकेशन या टूरिज़्म कंपनियों के बंदे-बंदियां अक्सर मॉल के बाहर घूमते रहते हैं. उनके साथ कूपन की एक डायरी होती है, जिस पर आपको अपना नाम, मोबाइल नंबर और अपनी गाड़ी की जानकारी लिखनी होती है. वो आपको लकी ड्रॉ की बात कहते हैं, पर अगले ही दिन निश्चित रूप से आपको फोन आ जाता है कि आपका सिलेक्शन हो गया है और आपको ‘तीन दिन चार रात’ का फ्री हॉलिडे पैकेज मिला है. आपको इसके लिए हमारे ऑफ़िस में आना होगा – आपकी पत्नी के साथ. जी हाँ, पत्नी के बिना एंट्री नहीं मिलेगी और न ही फ्री हॉलिडे पैकेज. अब पत्नी को लाने की शर्त क्यों होती है, आगे आप खुद जान जाएंगे.
तो जब आप उनके शानदार एयर-कंडिशंड ऑफिस में अपनी पत्नी के साथ पहुंचते हैं तो आपका बड़ा स्वागत किया जाता है, आपको कॉफ़ी या ज्यूस पिलाया जाता है, और आपसे अनुरोध किया जाता है कि आधे घंटे के लिए आपको उनका प्रेज़ेन्टेशन देखना-सुनना होगा, फिर आप अपना फ्री हॉलिडे पैकेज ले सकते हैं. अब हम पहुंच तो गए ही हैं, तो इनकी भी सुन लेते हैं, अपना क्या नुकसान है, प्रेज़ेन्टेशन के बाद इंकार करके और अपना फ्री पैकेज लेकर निकल जाएंगे, ये सोचकर आप हामी भर देते हैं.
इसके बाद आपको एक बड़ी सी एलईडी स्क्रीन पर खूबसूरत पहाड़ों और वादियों के नज़ारे दिखाए जाते हैं, शानदार रिज़ॉर्ट या होटल के लक्ज़री कमरे दिखाए जाते हैं. वो भी एकदम सस्ता. अब इस केले के छिलके पर पैर रखते ही आप फिसलने लगते हैं. आपको भरपूर सब्ज़बाग वाली इस जन्नत की सैर करवाने के बाद आपको हॉलिडे क्लब की मेंबरशिप ऑफ़र की जाती है. अब आप ऐसी स्थिति में होते हैं कि आपका इंकार करना मुश्किल हो जाता है. अब आप अपनी पत्नी की ओर देखकर, अपनी भौंहें उचकाकर उससे सलाह लेते हैं, पर वो तो पहले से ही फ़्लैट हो गई होती है. मार्केटिंग के उन महारथियों को पता होता है कि अधिकांश पत्नियां अपने पतियों से शिकायत रखती हैं कि वो उन्हें घुमाने नहीं ले जाते. अब तो सामने एक बेहतरीन लाभदायक ऑफ़र है, आप कैसे इंकार करेंगे? और यहीं आकर 10 में से 6-7 लोगों की भैंस पानी में चली जाती है. आप, जो अपने फ्री हॉलिडे का दावा करने आए थे, एक बड़ी राशि का चेक देकर भारी मन से चले जाते हैं, इस उम्मीद में, कि शायद आपने फायदे का सौदा किया है और आपको ‘घूमने’ का मज़ा आएगा.
तो महोदय, मेरी गुज़ारिश है कि अगर कोई आपको ऐसा बेहद फायदेमंद लुभावना ऑफ़र दे, तो उसे टटोलने या आज़माने के लिए आगे कदम मत बढ़ाइए. वो आपसे कहीं ज़्यादा दिमाग रखते हैं, वो मनोविज्ञान के ज्ञाता होते हैं. उन्हें पता होता है कि आप कब दाएं-बाएं जाएंगे और कैसे आपको शीशे में उतारना है. इसलिए बाद में आपका संभलना मुश्किल होगा, इसलिए पहले ही, दूर से राम-राम कर लीजिए. क्योंकि सच मानिए, दुनिया में कोई भी चीज़ मुफ़्त में नहीं मिलती.
विदा!
आपका
पवन अग्रवाल
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Shandar