नमस्कार!
आप सभी ने वो मशहूर गीत तो सुना ही होगा –
‘‘सावन का महीना, पवन करे सोर
जियरा रे झूमे ऐसे, जैसे बन मा नाचे मोर…’’
कहने की ज़रूरत नहीं कि इस ब्लॉग का नाम भी इसी गीत से प्रेरित है. वैसे ये गीत मीठा, प्यारा और खूबसूरत तो है ही, पर ये मुझे इसलिए भी पसंद है, क्योंकि इस गीत की पंक्तियों में मेरा नाम शामिल है. जी हाँ… मैं पवन अग्रवाल. मध्य प्रदेश का एक छोटा सा गाँव निमरानी मेरी जन्म स्थली है. बचपन से बड़ा संकोची, शर्मीला, अपने में खोया रहने वाला, पढ़ाई में औसत, पर पढ़ने में अव्वल – यानी किताबें पढ़ने में अव्वल था. सारा-सारा दिन कॉमिक्स, उपन्यास और कहानियों की किताबें पढ़ता रहता. सब बोलते, इतना मत पढ़ा कर, चश्मा लग जाएगा. खैर, चश्मा तो अभी तक नहीं लगा, पर पढ़ते-पढ़ते कुछ लिखना भी आ गया. पिताजी की किराना दुकान थी (अभी भी है), उस पर भी बैठा, पर कभी मन लगा नहीं. हाल ये था कि अगर दुकान पर कभी ग्राहकों की भीड़ हो जाए, तो खुशी के बजाय मुझे घबराहट होने लगती.
मैं हमेशा से सोचता बहुत रहा, पर कभी ये नहीं सोच पाया कि लाइफ़ में क्या करना है. पवन सोर बहुत करता था, पर भीतर ही भीतर, बाहर से तो गुमसुम और खामोश ही रहता. अपने ज़्यादा सोचने की ‘प्रॉब्लम’ से मैं बहुत परेशान रहता था. लगता था शायद यही मेरी कमज़ोरी है. फिर कहीं पढ़ा कि अपनी कमज़ोरी को ही अपनी ताकत बना लेनी चाहिए. एक दिन अपनी ही डायरी के पन्ने पलटे, तो लगा, वाह! कितना अच्छा लिखता हूँ मैं. मुझे तो लेखक ही बनना चाहिए. कोई और विशेष गुण था भी नहीं, सिवाय लिखने के. तो ले-देकर आखिर में लेखक ही बन गया. सबसे पहले नईदुनिया अखबार में अपने लेख भेजे, तो वो छपने लगे.
मुझे बचपन से फिल्में देखने का जबरदस्त शौक था, खास तौर पर आर्ट फिल्में मुझे बहुत अच्छी लगती. फिल्म का विषय, कहानी, कैमरे का मूवमेंट, लाइटिंग, एडिटिंग… मैं सबको बड़े ध्यान से जज करता. मुझे ये भी लगता था कि मुझे फ़िल्म मेकर बनना चाहिए, पर मेरे लिए ये बहुत दूर की कौड़ी थी. पर मुझे नहीं पता था कि मेरी किस्मत में मुंबई का दाना-पानी लिखा है. एक दिन अचानक ज़िंदगी ने करवट बदली और किराना दुकान के काउन्टर से निकलकर पहुंच गया मुंबई मायानगरी. वहाँ थोड़े संघर्ष के बाद किस्मत ने साथ दिया और एक टीवी सीरियल लिखने का मौका मिला. धड़कते दिल से अपनी पहले एपिसोड की डायलॉग स्क्रिप्ट लिखकर दी, डर था, कहीं डायरेक्टर साहब उसे पढ़कर मेरे मुंह पर न मार दें. पर ऐसा नहीं हुआ, उन्हें वो पसंद आई. फिर सिलसिला चल पड़ा. दो-चार सौ एपिसोड लिख भी डाले. इंडस्ट्री में लोग पहचानने लगे, पैसे भी अच्छे मिलने लगे, पर मन फिर भटकने लगा (आखिर वो ‘अच्छा’ लेखक ही क्या जिसका मन न भटके). ग्लैमर के पीछे का बनावटीपन और उबाऊपन काटने लगा, मन उचट गया. इसी बीच कुछ पारिवारिक समस्याएं सामने आ खड़ी हुई, परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि जैसे अचानक वहाँ पहुँचा था, वैसे ही अचानक सब छोड़कर लौट आया.
कहीं पढ़ रखा था कि विज्ञापन एजेन्सी में कॉपीराइटिंग का काम बड़ा रोचक होता है, सो कुछ समय बाद इंदौर की एक एजेन्सी में कॉपीराइटर की जॉब कर ली. पर एजेन्सी में क्या होता है, ये तो एजेन्सी वाले ही जानते हैं, मैं भी जल्दी जान गया, सो अगले स्टेशन पर इस ट्रेन से भी उतर गया.
अब ज़िन्दगी के प्लेटफ़ॉर्म की बेन्च पर फिर बैठकर सोचने लगा कि क्या करूं, कौन सी ट्रेन पकड़ूँ? जिस तरह ‘कूली नं. 1’ फिल्म में गोविंदा को बार-बार कहा जाता था कि ‘तू कूली है, कूली है, कूली है’, उसी तरह मुझे भी मेरी अंतरात्मा बार-बार कहती कि ‘तू लेखक है, लेखक है, लेखक है’. मुझे भी पता था कि लेखक तो मैं हूं, पर एक ‘अच्छे’ लेखक की तरह मैं हमेशा इसी पसोपेश में रहा कि क्या लिखूँ, कहाँ लिखूँ, कैसे लिखूँ, किस पर लिखूँ, यही सोचने-सोचने में साल दर साल निकलते गए. दूसरों के लिए तो फटाफट लिख देता, और कमाल का लिखता, पर अपने लिए लिखने को हमेशा ही टालता रहा. वो तो गनीमत थी कि अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करने का काम पकड़ में आ गया, तो रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम हो गया, वरना पता नहीं क्या होता.
अनुवाद मेरा ‘ब्रेड एंड बटर’ है. इससे कमाई अच्छी हो जाती है, पर यहाँ भी हाल किराना दुकान जैसा ही है. जो जॉब आते हैं, उन्हें टालता रहता हूँ, क्लाइंट का दो बार फोन आता है, तभी काम शुरू करता हूँ, यह कहते हुए कि बस हो ही गया है, जल्दी भेजता हूँ. लेखनी अच्छी है तो क्लाइंट भी मेरा काम पसंद करते हैं और इसीलिए थोड़ी लेट-लतीफी भी सहन कर लेते हैं. कुल मिलाकर ज़िन्दगी की दुकान अच्छी चल रही है पर मन खिन्न रहता है (वैसे खिन्न मन भी अच्छे लेखक की ज़रूरी निशानी होती है). केवल अनुवादक बनकर खुश नहीं हूँ, लगता है किसी और ही रास्ते पर चलता जा रहा हूँ. पवन का ‘सोर’ अब ‘शोर’ बनने लगा था. तो काफ़ी ‘सोचने’ के बाद, फ़ाइनली अपना ये ब्लॉग बनाया और अब ये आपके सामने है. उम्मीद है मेरा लिखा आपको पसंद आएगा. अपने सुझाव और प्रतिक्रियाएं ज़रूर दीजिए. मेरी इस नई यात्रा में यही मुझे रास्ता दिखाएंगे.
आपका
पवन अग्रवाल
… और हाँ, एक ज़रूरी बात तो रह ही गई! शायद आप जानना चाहते होंगे कि ये ब्लॉग किस विषय पर होगा. तो भैया ऐसा है कि शुरू से जेन्डर के अलावा अपना कुछ भी फिक्स नहीं रहा. जब जो मन करेगा, लिख देंगे… और जो लिखेंगे, अच्छा ही लिखेंगे… और उम्मीद है, वो आपको पसंद भी आएगा. तो बस पढ़ते जाइए, और अच्छा लगे तो शेयर भी कीजिए। आपके सहयोग और शुभकामनाओं की आकांक्षा में…
फिर से आपका
पवन अग्रवाल
27 Comments
Bahut acha start diya hai aapne apna experience sbake sath share krne ke liye sukariya
Itni meri umar to nahi pr ek suggestions or request
Aane wali generation ko sahi disha ki bahut jarurat hai mere khayal se aapko is vishay pr bhi vichar krna chahiye apne agle lekh ke liye
Thank a lot for your comment. It’s 1st comment on my blog. Tumne bahut achchha suggestion diya hai, main is par zaroor likhunga.
Bahut khub chacha ji
धन्यवाद जी।
Beautiful kahani sir
Thank you Narendar.
Congratulation Pawan Bhai
Thank you Sumeet ji.
आपके इस नए प्रयोग , नई सोच , नई सुरवात के लिये ढेर सारी शुभकामनाएं , पवन की तरह निरन्तर यह विचार धारा ( पवन करे सोर ) प्रवाहित होती रहे , और हम सभी इसका आनंद लेते रहे …..
धन्यवाद भाई।
सोर में शोर हुआ, और हुआ नया नवाचार, अब विचार और करू मुझे मिला मेरा ही सार….
मुझे ऐसा लगा शुरू के 3 पेरा में की में ही हूँ, बस में लेखक नही, मगर पवन भाई आपसे मुझे कुछ प्रेरणा तो मिली…!
बहुत बहुत धन्यवाद भाई।
बहुत बहुत बधाई एवं मंगलमय शुभकामनाएं ‘ पवन करे सोर “
बहुत बहुत धन्यवाद महेश भाई। इसी तरह ब्लॉग पढ़ते रहिए और अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहिए, और इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर कीजिए।
शब्दो का संबल मै तुझसे लेता रहूंगा
भाई तेरा लिखा मै पढता रहूंगा.. लव यू भाई.
1 no. शुरुआत पवन , इस नई शुरुआत पर आपको दिल से अनेकोनेक शुभकामनाएं ।आपकी इस नई कोशिश की और इस नए प्रयास की और आपकी ये योग्यता जिसमे आप की अच्छी खासी पकड़ है आप इस परीक्षा मैं सफल हो ।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। इसी तरह ब्लॉग पढ़ते रहिए और अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहिए, और इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर कीजिए। Thank you so much!!!
अपनी जिंदगी की किताब के पन्ने इतने बेबाक तरीके से सबके सामने खोल कर रख देना सबके हर किसी के
लिए संभव नही है ।
इस ‘पवन के सोर’ से प्रेरणा ले कर शायद वो लोग भी मन की बात
लिखने लगे जो घुटन में जिंदगी जीते है।
अपने अंतर्मन को रोशन कर पाए
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। कृपया ब्लॉग पढ़ते रहिए और अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहिए, और इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर कीजिए। Thank you so much!!!
Very good pawan,you rocked
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। कृपया ब्लॉग पढ़ते रहिए और अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहिए, और इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर कीजिए। Thank you so much!!!
Congratulations sirji
आपका बहुत बहुत धन्यवाद श्रीधरजी। इसी तरह ब्लॉग पढ़ते रहिए और अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहिए, और इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर कीजिए। Thank you so much!!!
बहुत अच्छा
तुझसे मै शब्दों का संबल लेता रहूंगा
तेरा ब्लाग मै पढता रहूंगा. लव यू भाई.
तू युहीं मेरा #दामन थामें रखना ऐ #यारा
#मैं मुठ्ठी भर उम्मीदों से #क़ायनात जीत लूँगा ।।
bs isi ummido aur shubhkamno k sath aage bdte rahiye bhaiya
Thank you very much bhai!