बुझे हुए दीये से रोशनी तो नहीं मिलती
पर मिलते हैं रोशनी के निशान
जो रह गए हैं उसके होठों पर
कालिख बनकर
ध्यान से सुनो
कितना कुछ कहता है ये दीया
पुराने किस्से
कभी कुम्हार के हाथों में आई मिट्टी
गोल-गोल घूमकर दीया बन गई थी
फिर आग में तपा, लाल-लाल दहका
जैसे जवानी का जोश
और खून में उबाल
हलका-फुलका
खन-खन की आवाज़ करता
कैसा था वो जोश
कि रोशन कर दूँगा ये संसार
निभाऊँगा अपना फ़र्ज़
फिर न जाने कहाँ से
एक झक स़फेद, खूबसूरत, बल खाती हुई बाती
उसके गले से लिपट गई थी, अभिसारिका की तरह
फिर डला उसमें तेल, ज़िम्मेदारियों का
जो जज़्ब हुआ उसके बदन में
और वो कुछ भारी सा हो गया,
पर फिर भी वो खुश था
वो जला, अपनी बाती के साथ
प्रकाश फैला, तिमिर दूर हुआ
उत्वस सा छा गया, लोग नाच उठे
दिया जलता रहा, अपनी बाती के साथ, तेल से भरा हुआ
वक्त गुज़रता रहा, बाती छोटी और तेल कम होता गया
अब न दिए का वो सुर्ख लाल रंग रहा
न बाती की वो खूबसूरत झक सफेदी
गाढ़े तेल की लिपड़-चिपड़ में
लौ के साथ सबकुछ धीमा हो गया
वो बाती जो इठलाती बलखाती सकुचाती आई थी
जैसे नई दुल्हन घर में आती है चावल का कलश बिखेरकर
अब न वो आभा है, न सौंदर्य ही बचा है
दूसरों को उजाला देते-देते हो गई है जीर्ण-शीर्ण
फिर वो भी हुआ जिसका डर था दिए को
जल-जलकर छोटी होती बाती
कालिख की चादर ओढ़ती एक दिन बुझ गई
दिया अकेला रह गया,
गाढ़े तेल का बोझ अपने में समेटे
उस प्रेत की तरह
जो बावड़ी में अपनी प्रेयसी का कंकाल सीने से लगाए घूमता था
बुझ गए उस दिए को अनुपयोगी समझ
उठाकर स्टोर रूम के एक कोने में
गत्ते के डिब्बे में पटक दिया गया
जिस अंधेरे से वो लड़ा था, जीता था
वही अब उसके हिस्से में आया है
अब वह उसी से बतियाता है
और इंतज़ार करता है उस चोट का
जो उसे तोड़ देगी कई टुकड़ों में
और वो जा मिलेगा उसी मिट्टी से
जिससे बनी थी उसकी देह
और शुरू हुई थी उसकी यात्रा.
– पवन “एकान्त”
7 Comments
शानदार पवन जी
धन्यवाद गौरवजी! कृपया विषेशतः इस कविता की लिंक अपने सभी मित्रों को शेयर करें।
DEAR PAWAN EXCELLENT BUT WHAT ABOUT THE WHITE BAATI VO BHE TO JALI RAKH KALI SE USI SE BANI USKA VAJOOD BHE DEEPAK SE OR USKE SAANTH SE HE.
Nice
तुम्हारे बिना ये होता ही नहीं। असीम प्रेम प्रिये!
जीवन के समग्र सार को अपनी कविता के शब्दो में खूब पिरोया है मित्र, अत्यंत सुंदर …….
कहते रहो लफ्जो में अपने दिल की बात, हम इंतजार करते रहेंगे…..
धन्यवाद मनोजजी