आप भी करें सोर
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बड़ा धारदार है ‘उधार’!
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भारत की देहाती मिट्टी अंतरराष्ट्रीय आसमान में!

किसान आंदोलन… ये दो शब्द आज हर जगह छाए हुए हैं, न्यूज़ चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक, क्लबों या सोशल गेदरिंग से लेकर पान की टपरियों और चौपालों तक हर जगह यही चर्चा है. जहाँ चार लोग मिलकर बातें करते दिखें, समझो किसान आंदोलन पर ही बात हो रही है. और हो भी क्यों नहीं, आखिर मामला एक कृषि-प्रधान देश के किसानों और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार के बीच सीधे टकराव का जो है. और सरकार भी ऐसी, जिसने विगत वर्षों में विविधताओं से भरे इस देश की व्यवस्था में सुधार के लिए अब तक के सबसे कठोर कदम उठाए हैं और विरोधियों के लाख घेरने पर भी यह मैमथ अब तक गिरा नहीं. पर अब शायद ऊंट पहाड़ के नीचे आया है. 

अभी-अभी कुछ फुसफुसाती खबरें आई थीं कि किसान अपने ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में आंदोलन करेंगे. उस वक्त किसी को भी ये अंदाज़ा भी नहीं था कि ये चिंगारी इतना बड़ा दावानल बन जाएगी. आंदोलन तो इससे पहले भी हुए, बहुत हुए, अन्ना हज़ारे, बाबा रामदेव, सीएए-एनआरसी वगैरह-वगैरह, जिन्हें वक्त रहते सरकारों ने ‘निपटा’ दिया. पर ये बौना और कमज़ोर सा दिखने वाला पहलवान इतना चपल और ढीठ होगा, किसने सोचा था? प्रचंड बहुमत से चुनकर आई और अंगद के पाँव की तरह जमी सरकार को भी चक्कर आ रहे हैं. अद्भुत है! 

26 जनवरी को जो हुआ, वह अभूतपूर्व था, स्तब्ध कर देने वाला था. लोकतंत्र के सीने पर नंगा नाच करते विद्रोहियों ने जो झंडा गाड़ा, उसने हमें अंदर तक हिला दिया. सरकार ने कहा, वो किसानों में से ही कुछ उपद्रवी थे, किसानों ने कहा, वो हम नहीं, सरकार के ही गुंडे थे. वो कोई भी हों, पर ‘हम भारत के लोग’ तो ठगे से रह गए! हमारे पास न्यूज़ चैनलों की बड़-बड़ सुनने और सोशल मीडिया पर खुद बड़बड़ाने के अलावा और क्या चारा बचा? ‘हम भारत के लोग’ गुस्से में थे, अभी भी हैं, पर अपना ये गुस्सा किस पर निकालें? किसको कोसें? किसे सज़ा दें? 

और अब तो घर की बातें बाहर तक चली गई हैं. हमारे घर में मचे घमासान पर अब मुहल्ले के लोग बातें करते हमारी दहलीज़ तक आ गए हैं! सरकार के पक्षधर इसे हमारे आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप बता रहे हैं, तो सरकार विरोधी तत्व मन ही मन खुश हो रहे हैं, कुटिलता से मुस्कुरा रहे हैं, कि चलो, बात निकली तो दूर तक चली गई! रायता फैल गया! 

आश्चर्य है… देखते-देखते कैसे ये छोटी सी बात बतंगड़ बन गई है; भोले-भाले किसान अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाइमलाइट में आ गए, अभी तो किसान भी चकित हैं, कि ये क्या हो रहा है! अभी तो सरकार भी स्तब्ध है कि ये क्या हो रहा है! अभी तो वो वर्ग भी स्तब्ध है, जिसे न तो सरकार से कोई सीधा वास्ता है और न ही किसान से, यानी अपने काम में, अपनी रोजी-रोटी कमाने में मगन आदमी, जो चुनाव आने पर वोट देकर अपना लोकतांत्रिक कर्त्तव्य निभा देता है और रोज़ शाम को थका-माँदा घर लौटा, एक हाथ से रोटी तोड़ता और दूसरे हाथ में रिमोट लेकर न्यूज़ चैनल बदलता रहता है, इस उम्मीद में कि कुछ अच्छा सुनने को मिल जाए. 

किसान सही हैं या सरकार, ये तो लंबी बहस का विषय है, पर फिलहाल हमारे लिए सबसे ज़रूरी ये है कि हम अपने देश, अपने भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल होने से बचाएं. किसान और सरकार चाहे जितने लड़ें, जितनी देर तक लड़ें, पर अभी थोड़ा सा ‘ब्रेक’ लेकर हमें समझाने, हमारे घर तक पहुँचे उन मुहल्ले के तथाकथित चौधरियों को हाथ जोड़कर विनम्रता से कहें कि आप अपना काम करें, हम इतने सक्षम हैं कि इस मसले को समझदारी से हल कर सकते हैं, हमें आपकी ज़रूरत नहीं है, आप यहाँ से रवाना हों और अपने-अपने घर संभालें, क्योंकि गंदगी तो वहाँ भी फैली है, आग तो वहाँ भी लगी है, उनके कालीनों के नीचे भी बदबू मारता कचरा छुपाकर रखा गया है. पहले वो सब ठीक करें, और जब आपका सब ठीक हो जाए, तब हमसे, हमारे बारे में बात करें.

हम भारत के लोग वो हैं, जो चाहे गाँवों में रहें या शहरों में, पर हमें अपनी मिट्टी की खुशबू बेहद पसंद है. हम अनाज फ्री में नहीं लेते, फिर भी किसान को अन्नदाता कहते हैं, उसका सम्मान करते हैं. और क्यों न करें, हमारी संस्कृति और संस्कार ही ऐसे हैं. हम तो पेड़ों, नदियों, हवाओं तक को पूजते हैं, उनके भी आभारी होते हैं, तो किसान तो हममें से ही एक ऐसा जीता-जागता शख्स है, जो तमाम अभावों और मुसीबतों को सहते हुए भी अपना हल रुकने नहीं देता और हमारे अन्न के भंडारों को भरता रहता है. 

पर सौंधी महक वाली हमारे गाँवों की उस मिट्टी को अंतरराष्ट्रीय आसमान में उछाल दिया गया है, एक कपटी गुबार बनाने के लिए. राजनीति ऐसी ढीठ कुतिया है, जो कहीं से भी घुसकर मुँह मारने से बाज़ नहीं आती. कल तक हमारे जो किसान राजनेताओं को अपने आसपास भी नहीं फटकने देते थे, वो अब उन्हीं की छत्रछाया में जाते नज़र आ रहे हैं. हमारे किसान पानी के टैंकर के बिना भी रह सकते थे, कीलों पर भी चल सकते थे, बिना बिजली के अंधेरे में भी गुज़ारा कर सकते थे. इससे तो वे और उनका आंदोलन और मज़बूत होता! पर अफसोस, ऐसा होता दिख नहीं रहा है.

यह आंदोलन भारतीय इतिहास के लिए एक मिसाल बन सकता है, पर देशी-विदेशी राजनीति का साया कहीं इसकी उज्ज्वल छवि को धूमिल न कर दे. यह अग्निपरीक्षा का चरम क्षण है, इसे हमें धीरज और समझदारी से पार करना ही होगा, तभी हम दूसरों के लिए मिसाल बन सकेंगे, वरना बस उनके हाथों के खिलौने बनकर रह जाएंगे. हमें ध्यान रखना होगा, विरोध की आँच सरकार पर आए, देश पर नहीं! 

शुभकामनाओं सहित,

आपका 

पवन अग्रवाल
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24 Comments

  1. S M Ali says:

    बहुत खूब

    • pawan says:

      बहुत बहुत धन्यवाद अली साहब!

      • मदन लाल पारीक says:

        बहुत सटीक, किसान आंदोलन के नाम पर अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के सिवाय और कुछ नहीं है क्या इससे पहले किसान आंदोलन नहीं हुए।आंदोलनकारियों का मकसद क्या है ये 26 जनवरी को पूरे देश ने देख लिया है।

        इसलिए हम तो कहेंगे ऐसे आंदोलन के लिए ये पूरा देश
        इनके विरोध में खूब मचाए शोर।
        पवन खूब करे शोर
        जय हिन्द जय भारत

  2. दिलीप शर्मा says:

    अच्छा लिखा, तथ्य परक आलेख है. बधाइयां

  3. Jeet says:

    पवन करे सोर पड़ा पर इस लगा जैसे मैं सब कुछ लाइव देख रहा है । शब्द के सहारे भावनाओ को समझ कर सबकुछ लाइव हो रहा है इस महसूस कराया है ।आपके लेख ऐसे ही आते रहे ।अतिउत्तम पवन का सोर खूब मचाये शोर।
    दिल से सफलता की अनेकों शुभकामनाएं।

  4. R C KUMBHKAR says:

    A FARMER CAN’T BE A BUSINESSMAN. HE IS A PRODUCER HIS PRODUCE PRICE IS INVERSLY RELATED TO THE QUANTITY OF PRODUCTION. FARMER CAN’T B SURVIVE WITHOUT GOVMNT SUBSIDY. THERE ARE 15 CRORE FARMERS IN INDIA AND ONLY 11 LAKH IN PUNJAB WHO ARE UNHAPPY WITH GOEMNT POLICIES. REST ARE OK.
    IT SEEMS THAT THIS IS A BULLSHIT ANDOLAN RUN AND DESIGNED BY ANTY MODI AND PROCONGRESS PEOPLE.
    AS THERE NO OTHER SCANDLE AVAILABLE TO OPPOSITION AND SPECIALLY THE COLLAPSING CONGRESS RUN DEAF AND DUMB LEADERS.
    MODI WILL ALLOW THIS ANDOLAN TO DIE A NATURAL DEATH.
    JAI BHARAT

  5. Arachana joshi says:

    Very well written. Best wishes.

  6. Vijendra gupta says:

    आंदोलन के नाम पर अराजकता फैलाने वाले इस आंदोलन पर आपने बहुत अच्छी तरह से प्रकाश डाला है अब इस आंदोलन के पीछे विदेशी फंडिंग व छाया समर्थको को भी बेनकाब करे भाई हम तुम्हारे साथ है निडर लेखनी करे….. जय हिन्द.

  7. Deepak Kishan Dogra says:

    बहुत अच्छा दोस्त… निरंतर शोर मचाते रहो… कभी तो कोई शोर दूर तलक जाएगा… लिंक सांझा करने के लिए आभार…

    • pawan says:

      धन्यवाद दीपक जी, आपकी आलोचनाओं की प्रतीक्षा है।

  8. दीपक गर्ग says:

    बहुत ही सटीक,आपकी लेखनी में यथार्थ सच्चाई है।
    किसी प्रकार की राजनीति,कूटनीति व चाटुकारिता नही दिखाई देती,इतनी बेबाकी से बात रखना ही लेखनी को मज़बूत बनाता है
    ढेर साधुवाद ।

  9. Priya says:

    अतिउत्तम पवन का सोर खूब मचाये शोर।
    दिल से सफलता की अनेकों शुभकामनाएं।

  10. Ashish kanungo says:

    सटीक।

  11. Niraj Sah says:

    Nicely written. Please expose the foreign hand and their conspiracy to disintegrate and harm India.

  12. मदन लाल पारीक says:

    बहुत सटीक, किसान आंदोलन के नाम पर अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के सिवाय और कुछ नहीं है क्या इससे पहले किसान आंदोलन नहीं हुए।आंदोलनकारियों का मकसद क्या है ये 26 जनवरी को पूरे देश ने देख लिया है।

    इसलिए हम तो कहेंगे ऐसे आंदोलन के लिए ये पूरा देश
    इनके विरोध में खूब मचाए शोर।
    पवन खूब करे शोर
    जय हिन्द जय भारत

  13. Parun Sharma says:

    jordar

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