जो बीत गया
दिल उसको फिर क्यूँ
याद करे, मैं जानूँ ना
जो छूट गया है पीछे उसके
भागे क्यूँ, मैं जानूँ ना
वक्त की नदिया बहती जाए
पल-पल कल-कल लहरों से
गुज़र गए जो आए लमहे
ओझल हो गए नज़रों से
खाली-खाली आँखों में क्यूँ
इंतज़ार, मैं जानूँ ना
जो बीत गया, दिल उसको फिर क्यूँ
याद करे, मैं जानूँ ना
सूनसान से रस्तों पर क्यूँ
नज़र गड़ाए बैठा है?
किसकी आहट पाने को यूँ
कान लगाए बैठा है?
चल उठ, घर चल, खत्म हुआ सब
खेल जो तूने खेला था
सन्नाटा पसरा है वहाँ पर,
जहाँ कभी वो मेला था
उम्मीदें अब भी ज़िन्दा हैं
कैसे, मैं ये जानूँ ना
जो बीत गया, दिल उसको फिर क्यूँ
याद करे, मैं जानूँ ना