हर वुमन वर्किंग वुमन
14/01/2021
शुकर कर, फिकर न कर…
14/01/2021

वो चोंच…

वो नन्हीं सी चोंच

जो आसमान की ओर उठी

इंतज़ार करती थी

अनाज के एक दाने का 

कोई था, जो उसके लिए फ़िक्रमंद था

जो दौड़-दौड़ कर, दूर-दूर से

ढूँढ कर, चुग कर, बीन कर, 

ले आता था अनाज के दाने 

वो बड़ी चोंच, बड़ा खयाल रखती थी

कि कहीं वो दाने 

फिसलकर उसी के पेट में न चले जाएं

उन दानों को सहेजे

वो बड़े प्यार से उस नन्हीं चोंच में डाल देती थी

और बड़ी खुश हो जाती थी

न बड़ी चोंच का एहसान

न नन्ही चोंच का आभार

कुछ था तो बस प्यार

अनाज के यही छोटे-छोटे दाने

धीरे-धीरे उस छोटी चोंच को बड़ा बनाते गए

और एक दिन वो नन्हीं चोंच

इतनी ताकतवर, इतनी बड़ी बन गई

कि वो खुद लाने लगी अपने लिए दाने

अब उसे नहीं थी ज़रूरत किसी सहारे की

किसी का इंतज़ार करने की

किसी के लिए रुकने की 

यह देखने की

कि क्या हुआ उस चोंच का

जो कभी दाने चुगती तो थी

पर अपने लिए नहीं 

उसके लिए

उस चोंच को भुला चुकी थी

वो चोंच! 

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