मौसम ज़रूर खिज़ा का है,
पर इसमें तू और भी निखर
चलता चल, के तू अकेला नहीं
तेरे साथ कारवाँ है
डर तो बहुत है, रात भी है काली
स्याह अंधेरे में नज़र भी हुई धुंधली,
पर याद रख, के हर रात के आखिरी सिरे पर
उसके सीने पर कदम रख, आता है उजला सवेरा
पूरब से निकले सूरज की उंगली पकड़
निकल पड़ता है राही अपने सफर पर
इसलिए शुकर कर, फिकर न कर…
देख, के चल रहे हैं खेतों में हल
तू भी चल, तेरी भी मुश्किलों के मिलेंगे हल
हरियाली की अब भी कोई कमी नहीं जहाँ में
वही सूरज, वही तारे, वही चंदा है आसमाँ में
सुन, के कोयल बोल रही है, पानी कलकल बह रहा है,
देख ज़रा, वही परबत, वही आसमाँ, वही वादियाँ हैं
फिकर तू मत कर, उसे करने दे,
जिसने बनाया है मुझे, तुझे, सबको
हम कल भी थे, आज भी हैं, कल भी रहेंगे
इस बूँद में नहीं, उस सागर में ही सही
हम जीएँगे, हँसेंगे, गाएँगे, मुस्कुराएँगे
भरोसा रख, के उसने थाम रखी है उंगली हमारी
उसकी छुअन हर ज़र्रे में है, उसकी नज़र हर शै पर है
इसलिए अपनी न सही, उसकी खातिर
शुकर कर, फिकर न कर…
शुकर कर, फिकर न कर!!!