महिलाओं से परिचय के दौरान अक्सर एक सवाल पूछा जाता है – आप क्या करती हैं? जवाब में प्राय: दो विकल्प होते हैं – वर्किंग वुमन, या फिर हाउसवाइफ़. अगर आप वर्किंग वुमन हैं, या हिन्दी में कहें तो कामकाजी महिला हैं, तो इसका मतलब यह होगा कि आप कोई बिज़नेस या जॉब करती हैं, और अगर आप वर्किंग वुमन नहीं हैं तो फिर हाउसवाइफ़ या गृहणी हैं, तो फिर इसका मतलब हुआ कि आप कुछ नहीं करती हैं, कामकाजी नहीं हैं. आखिर घर के काम भी कोई काम होते हैं! यही वजह है कि अक्सर महिलाओं को खुद को हाउसवाइफ़ बताना कुछ शर्मिंदगी भरा लगता है.
पिछले कुछ सालों में वैश्विकरण बढ़ने के साथ हमारे भारतीय समाज के ताने-बाने में बड़ा बदलाव आया है. इसके साथ हमारी सोच, हमारा तौर-तरीका और हमारी धारणाएँ भी बदली हैं. अब परिवार छोटे, यानी न्यूक्लियर फैमिलीज़ ज़्यादा होती हैं. बजट बनाओ, पैसे-पैसे का हिसाब रखो, कड़ाही में तेल कम डालो, दूध में पानी ज़्यादा डालो, यानी कुल मिलाकर छोटी चादर को सिर से पैर तक ओढ़ लेने की जद्दोजहद चलती रहती है. ऐसे में महिलाएँ कोल्हू के बैल की तरह जी-तोड़ मेहनत करते अपने पति को देख, अक्सर कोई काम करने की जुगत लगाती रहती हैं, जिससे घर की आर्थिक स्थिति में भी वो कोई योगदान दे सके. एक फ़िक्र ये भी होती है कि अगर ‘इनको’ कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा. सवाल कड़वा, मगर ज़रूरी है. घर में अगर एक ही ब्रेड-विनर रहे तो ये बड़ा जोखिम भरा होता है. इसी आशंका, इसी भय का फ़ायदा बीमा कंपनियों को मिल रहा है. पति भी सोचता है कि कभी मैं नहीं रहा तो मेरे परिवार को एक बड़ी राशि मिल जाए, जिससे उनका काम चलता रहे. इसीलिए तो ‘टर्म प्लान’ खरीदे जाते हैं.
खैर, हम बात कर रहे थे वर्किंग वुमन और हाउसवाइफ़ की. तो मैंने जितना देखा है, घर का काम (सफाई, भोजन, कपड़े-बर्तन, बच्चे) अपने आप में एक पूर्णकालिक काम (फुलटाइम जॉब) है. और ये बेहद ज़रूरी भी है. केवल चार पैसे कमा लेना ही काफ़ी नहीं होता. आपको अपने रहने की जगह को साफ़ तो करना ही पड़ेगा, अपने लिए भोजन तो बनाना ही पड़ेगा, रोज़ाना मैले होने वाले कपड़े तो धोने ही पड़ेंगे, बच्चों का ध्यान भी रखना ही पड़ेगा. पैसा कमाना और गृहस्थी को संभालना, दोनों एक गाड़ी के दो पहिए हैं, एक भी हटा तो समझो गाड़ी ढेर हुई. पर हम घर के कामकाज को बड़ी हीन दृष्टि से देखते हैं, उन्हें तुच्छ समझते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है. अगर किसी दिन सुबह उठने के बाद आप घर का कोई काम नहीं करें, तो शाम होते-होते आपको पता चल जाएगा कि घर के साथ-साथ आपकी भी हालत खराब हो गई है. जब पत्नी चार दिन के लिए मायके जाती है, तो अक्सर पति और घर के अन्य सदस्यों को एहसास होता है कि घर के जिस साफ़ आँगन में वो चलते-फिरते हैं, वो यूँ ही साफ़ नहीं होता. उनकी थाली में जो गरमा-गरम रोटी और स्वादिष्ट सब्ज़ियाँ आती हैं, वो यूँ ही नहीं आ जाती. मोज़े-तौलिए से लेकर पेंट-शर्ट तक का कितना खयाल रखना पड़ता है. और बच्चों को संभालना… उफ़!!!
अगर हम ध्यान से देखें तो हर महिला वर्किंग वुमन होती है, चाहे वो नौकरी या बिज़नेस करे, या फिर हाउसवाइफ़ हो, वो बेहद ‘वर्किंग’ होती है, शायद पुरुषों से भी ज़्यादा ‘वर्किंग’ होती है. आइए, हम अपनी ‘मातृशक्तियों’ का आभार मानें, उनका अभिनंदन-सम्मान करें, उन्हें प्रणाम करें!
नमस्कार!
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Thanks pawnji