आँखें सीख रही हैं मिलना,
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके!
कलियाँ सीख रही हैं खिलना,
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके!
रातों की सरगोशी में अब
धुन कोई मीठी बजती है
दिन में धूपें गुनगुन करती
साँझ ढले दुलहन सजती है
सपने सीख रहे हैं जगना,
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके!
किसी के आने की आहट से
दिल की महफ़िल नाच उठी है
किसी के हँसने, छूने भर से
सोई हसरत जाग उठी है
बातें सीख रही हैं होना
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके!
आँखें सीख रही हैं मिलना,
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके!
कलियाँ सीख रही हैं खिलना,
धीरे-धीरे, चुपके-चुपके!
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Great