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तालिबान, अफ़गानिस्तान और हम!

अफगानिस्तान से अमेरिका की रवानगी होते ही ये देश फिर उसी जगह आ गया है, जहाँ वो लगभग बीस साल पहले था. वही तालिबान, वही भगदड़, वही अराजकता, वही आतंकी माहौल. तालिबान की वापसी होते ही पूरी दुनिया सकते में आ गई, राजनीतिक और सामाजिक हलचल सी मच गई. आशंकाओं का बाज़ार गर्म हो गया. अफगानिस्तान प्राचीन काल में गांधार प्रदेश था और अगर पाकिस्तान नहीं बनता तो आज अफगानिस्तान हमारा ऐसा पड़ौसी देश होता जिसकी सीमाएं सबसे ज़्यादा हमारे भारत से ही जुड़ी होती.

अफगानिस्तान हमेशा से अशांत ही रहा, आखिर जिस शकुनि मामा के कारण हमारे यहाँ महाभारत हुआ, वो वहीं से तो आए थे. यूरोप से चीन, भारत और बाकी एशिया के लिए लोकप्रिय रेशम मार्ग (सिल्क रूट) इसी अफगानिस्तान से होकर गुज़रता है, जिसके कारण इस देश पर सभी आने-जाने वालों की नज़र पड़ती रही और इसी कारण यहाँ शांति कम ही रही.

खैर ये तो इतिहास और भूगोल की बातें हैं. अब हम आते हैं आज के हालातों पर. अफगानिस्तान में हुए तालिबानी धमाके की गूँज यूँ तो पूरी दुनिया में रही, पर भारत में इसका कंपन कुछ ज़्यादा ही हो रहा है. सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है. सब अपने-अपने चश्मे से इस नए नज़ारे को देख रहे हैं.

अफगानिस्तान में तालिबान की जीत ने इस्लामिक कट्टरता के हिमायतियों के हौंसले बहुत बढ़ा दिए हैं. आज भी ऐसे सिरफिरों की कमी नहीं है जो पूरी दुनिया को अपने मज़हब के रंग में रंगने का सपना पूरे आत्मविश्वास से देख रहे हैं.

लेकिन इसी के साथ ऐसे सिरफिरों की भी कमी नहीं है, जिनको अफगानिस्तान के बहाने इस्लाम और गैर-तालिबानी, गैर-अफगानी मुसलमानों को निशाना बनाने का एक बेहतरीन मौका मिल गया है. आजकल वो जी भरकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं और लोगों को इतिहास की दर्दनाक घटनाओं की याद दिलाकर एक बेहद डरावना भविष्य दिखा रहे हैं. पहले वो उन्हें नफरत से ‘पाकिस्तानी’ कहकर बुलाते थे, अब इसमें थोड़ी और कड़वाहट घोलकर उन्हें ‘तालिबानी’ की संज्ञा देने लगे हैं. अजीब है ना, कि अफगानिस्तान से हमारा कोई सीधा लेनादेना नहीं है, फिर भी हम अपने भारत के वर्तमान और भविष्य को उसके नज़रिए से देख रहे हैं.

हमारी आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें एक शांत और सुखी देश दें. और ये ज़िम्मेदारी सभी की है, केवल किसी एक धर्म के लोगों की नहीं है. हमें अपने निहित स्वार्थों, अपनी धारणाओं, पूर्वाग्रहों और विचारधाराओं से ऊपर उठकर सच्चाई और अच्छाई का समर्थन और झूठ व बुराई का विरोध मुखर होकर करना पड़ेगा. हम चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम, या फिर कोई और, पर हमें अपनी सोच और धारणाओं से निरपेक्ष होकर सच को सच और झूठ को झूठ, अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने का साहस करना होगा और ऐसा करने से ही हमारा देश और मानवता मज़बूत बनेगी.

तालिबान को लेकर भविष्य में क्या होगा, आशंकाएं कितनी सच साबित होंगी या वो बस आशंकाएं ही रह जाएंगी, ये तो अभी कोई नहीं बता सकता है. पर हमें अतीत की परछाईयों और भविष्य की धुंध को छोड़कर वर्तमान पर फोकस करना चाहिए. भारत यूं भी हज़ारों सालों से इतने बड़े-बड़े संकटों से जूझता यहाँ तक पहुँचा है, तो आगे भी निपट लेगा. ये देवभूमि है. यहाँ की बात अलग है. हमें बस अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मन में सत्यता और निष्ठा रखकर समर्पण भाव से इसकी सेवा करते रहना है. आज मैं अपने इस आलेख का समापन एक गीत की कुछ पंक्तियों के साथ कर रहा हूँ जो मुझे बहुत प्रिय है.  

‘‘है याद हमें युग युग की, जलती अनेक घटनाएं
जो मां के सेवा पथ पर, आई बनकर विपदाएं
हमने अभिषेक किया था, जननी का अरि-शोणित से
हमने श्रंगार किया था, माता का अरि-मुंडों से

हमने ही उसे दिया था, सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
मां जिस पर बैठी सुख से, करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से, वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर, हम करें पुन: संस्थापन, हम करें पुन: संस्थापन…

हम करें राष्ट्र आराधन, हम करें राष्ट्र आराधन”

हमेशा की तरह आशा करता हूँ कि आपको ये आलेख पसंद आया होगा. कृपया अपनी प्रतिक्रियाओं से अवश्य अवगत करवाएं.

आपके स्नेह का आकांक्षी,

आपका पवन

6 Comments

  1. Deepak says:

    Short sweet and to the point

  2. Ankit Agrawal says:

    लोगों को बस बहाना चाहिए नफरत फैलाने का…..

  3. Aarti Agrawal says:

    जिस दिन धर्म बीच मे से चला जाएगा उस दिन सही मायनो मे राष्ट्र, स्वतंत्र राष्ट्र बन पाएगा! …. बहुत खूब.. गागर मे सागर भरने वाली बात कही आपने

  4. Nilesh+Jain says:

    Awesome….Truly thoughtful and inspiring

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