तालिबान, अफ़गानिस्तान और हम! 13/09/2021
एक किसान ने अपनी छोटी सी ज़मीन के टुकड़े में एक पौधा लगाया। बीज बोने से लेकर उसे बड़ा करने तक वह उसमें लगा रहा। इस दौरान वह अपनी खुद की फसल पर भी ध्यान नहीं दे पाया, क्योंकि उसे उस पौधे से बड़ा प्रेम था। एक दिन वह पौधा पेड़ बन गया और वह किसान बूढ़ा हो चला। पेड़ पर खूब मीठे-मीठे फल लगने लगे। एक बार वह अपनी चारपाई लेकर उस पेड़ की छांव में सुस्ताने आ गया। उसे भूख भी लगी थी, सो उसने सोचा, दो चार फल तोड़कर खा लिए जाएं। वह जैसे ही फल तोड़ने आगे बढ़ा, पेड़ ने उससे कहा कि रुको… ये फल तो मेरे हैं, तुम्हारा इन पर कोई अधिकार नहीं। किसान सकपका गया, फिर उसने कहा कि तुम्हें तो मैंने ही लगाया था, तो पेड़ ने कहा कि तुमने तो बस मेरा बीज बोया था, कुछ दिन खाद-पानी दिया था, और वो तो तुम्हारा कर्त्तव्य था। मैंने अपनी जड़ों को ज़मीन में दूर-दूर तक फैलाया और न जाने कहां-कहां से अपना भोजन पानी लेकर आया। मैंने धूप-गर्मी, आंधी-तूफान झेले, बीमारियों से लड़ा और अपने दम पर आज इतना मज़बूत पेड़ बना। आज जो तुम मेरी डालियों पर लदे फल देख रहे हो, ये मेरी मेहनत, मेरे संघर्ष का नतीजा है। तुमने तो नाममात्र का योगदान दिया और अब, जब मैं बड़ा हो गया हूं तो तुम मेरे फल खाने आ गए। तुम्हारा अब मुझ पर कोई अधिकार नहीं। जानते हो, मेरे इन मीठे फलों का बाज़ार में कितना ऊंचा भाव है? तुम्हें हर चीज़ की कीमत देनी होगी, यहां तक कि मेरी घनी छांव में विश्राम करने की भी। किसान को बड़ा सदमा लगा। वह अपनी चारपाई उठा, उसकी ‘कीमती’ छांव से दूर निकल गया और अपनी ज़मीन के एक कोने पर छांव के लिए एक छोटा सा छप्पर लगा लिया। फल खाने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वह अपनी मेहनत-मजदूरी से कमाए पैसों से बाज़ार से फल खरीदकर लाने लगा. वह जब भी उस पेड़ के पास से गुज़रता, उसे देखकर उसके मन में बड़ी हूक उठती। उस पेड़ पर गुस्सा भी आता, पर वह चाहकर भी उसे कोस नहीं पाता, उसे भला-बुरा नहीं कह पाता। उसे अब भी उस पेड़ से स्नेह था। वह अब भी उसकी चिंता करता। अगर कोई आदमी कुल्हाड़ी लिए गुज़रता तो वह सतर्क होकर तब तक उसका पीछा करता, जब तक वह दूर नहीं निकल जाता। बूढ़े हो चले किसान को उसकी छांव की ज़रूरत थी, उसके फलों की ज़रूरत थी, पर वह अब उन पर अपना अधिकार खो चुका था। वह अपनी छोटी सी खेती-बाड़ी करके अपना गुज़ारा बड़े आराम से कर लेता था, क्योंकि उसके पास ज्ञान, अनुभव और हुनर था, वह उस पेड़ पर निर्भर नहीं था, पर उसे अपने पेड़ से मिली उपेक्षा का बड़ा रंज रहता। वह चाहता कि भले ही वह पेड़ उसे अपने फल न दे, पर कभी अपने पास बुलाकर दो शब्द कह दे कि तुम्हीं ने मेरा बीज बोया था, तुम्हीं मेरे बागबान हो… कि मैं आज जो कुछ भी हूं, तुम्हीं की वजह से हूं… कि मैं तुम्हारा ही हूं, मेरी छांव में सो जाया करो, फलों का क्या है, वो तो हर मौसम में आते रहते हैं, फिर आ जाएंगे… कि तुम मेरे एक फल का भोग लगा लोगे तो मुझे अच्छा लगेगा और मेरी डालियों में सौ फलों की बरकत आ जाएगी। अगर पेड़ उसे इतना कह देता, तो इतने भर से ही उसका मन हरा हो जाता और वह अपने दोनों हाथ उठाकर उसे खूब आशीषें देता। पर ऐसा कभी हो नहीं पाया। अपने से मिला धोखा इंसान को भीतर तक तोड़ देता है। वह अवाक् सा इधर-उधर देखता रह जाता है। अफसोस और हताशा के दंश ने उस किसान की उम्र के कुछ साल कम कर दिए और एक दिन उसका अंतिम समय आ पहुंचा। परमेश्वर से मिलन की इस बेला में उस किसान को गोदान की नहीं, बल्कि इस बात की चिंता हो चली कि कहीं उसका अंतिम संस्कार उसके पेड़ के लिए घातक न हो जाए, क्योंकि उसके गांव में लकड़ियों का बड़ा अभाव था और जब भी कोई मरता, तो उसी के खेत के किसी पेड़ को काटकर उसकी लकड़ियों से उसका अंतिम संस्कार किया जाता था। किसान ने गाँव वालों को बुलाकर अपनी अंतिम इच्छा बताई, कि उसकी पार्थिव देह को जलाने के बजाय उसे धरती की गोद में सुला दिया जाए और उसके लगाए पेड़ को कभी काटा नहीं जाए। वह अपनी विदाई की बेला में अपनी बंद होती पलकों से टकटकी लगाकर उस पेड़ को देखता रहा, पर पेड़ तो व्यस्त था अपनी शाखाओं को फैलाते हुए आसमान छूने की कोशिश में। उसे एहसास नहीं था कि जीवन कभी स्थाई नहीं होता और वह भी एक दिन बूढ़ा होगा, जब उसके हरे-हरे पत्ते और फलों से लदी डालियां अतीत की बात हो जाएंगी। उस समय अकेलेपन में जब वह अपने उस किसान को याद करेगा, तब वह उसे कहीं दिखाई नहीं देगा, क्योंकि वह तो कब का विदा हो गया था, उसके प्यार भरे दो शब्दों को सुनने की अधूरी आस लिए।– पवनकुमार अग्रवाल 9424535787
14 Comments
Bahut Khoob bandhu…
Dhanywaad Ji.
Bahut ache , apki is kahani se hame kitna kuch sikhne ko mila , jaise – hame kabhi bhi dusro ke bharose nahi rehna chahiy , apni manzil khud tay karni chahiy , or bhi bahut kuch hai sikhne ko , kai sari chize , jinka zikra bhi nahi kiya ja sakta
.
Thank you.
Shikshaprad kahani aajkal kisaan ki tarah samjh rakhne wale log bahut hi kam hai aur pedh ki tarah samjh rakhne walo ka ambaar laga hai.
बिल्कुल सही
Yah Duniya Ki Reet Hai bhaiya aap Jiske sath rahte ho uska Bhala karte ho usko Aage badhate Ho vah aapka Kabhi Sath Nahin deta aur na hi vah aapka Sahyog Karega per han aapane Jo Apna kimati Samay aur Sahyog Jo Diya Hai uski kimat Bhagwan Jarur Kisi Na Kisi Roop Mein Aakar aapka Sahyog aur aapke sath Hamesha Khade rahenge kabhi bhi Kisi Ka Bhala kya hua vyarth Nahin Jata Jay Shri Ram
Dhanywad Bhai.
नेकी कर दरिया में डाल ये मुहावरा/कहावत तब भी सही थी, आज भी सही है..
dhanywaad.
हिन्दी दिवस पर इतनी अच्छी और शिक्षाप्रद कहानी पढ़ने को मिली। अच्छा लगा। धन्यवाद।
धन्यवाद वंदनाजी।
Always been enthralled by the style you pen the story
Thanks Bro.