कोई थाम ले उंगली, बस इतनी सी चाहत है
कोई राह दिखा दे, बस इतनी सी चाहत है
अंधेरे कशमकश के बहुत गहरे हैं
उम्मीद के बुझे दीए को
कोई फिर से जला दे
बस इतनी सी चाहत है.
कहाँ से चले थे
कहाँ आ गए हैं,
मंज़िल कहाँ थी अपनी
अब ये भी हम भूले हैं.
मंज़िल से अपनी हमें कोई मिला दे
बस इतनी सी चाहत है.
हर राह डराती है
हर मोड़ बहकाता है
हर कदम पे लगता है धोखा
तू चल, कुछ नहीं होगा
ये भरोसा कोई दिला दे
बस इतनी सी चाहत है.
सफर तो अपना जारी है,
उम्र भी कट रही है
पर नज़रें अब धुंधला गई है
ये इंतज़ार कब खत्म होगा
कोई इतना बता दे
बस इतनी सी चाहत है.
इन बुझती हुई रोशनियों में
इन बढ़ते हुए सन्नाटों में
इस पूरब में दिखती उजास में
इस विदाई की घड़ी में
कोई हमसे हमें मिला दे
बस इतनी सी चाहत है.